Meenakshi Temple , Madurai



मीनाक्षी मंदिर ,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai
Credit:- google



मीनाक्षी मंदिर ,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai





रामेश्वरम में दर्शन करने के बाद हम लोग वापिस रामेश्वरम रेलवे स्टेशन आ गए और वहाँ से मदुरै जाने वाली ट्रेन पकड़ ली । मदुरै यहाँ से 160 किमी दूर है और लगभग चार  घण्टे में हम मदुरै पहुँच गए । मदुरै रेलवे स्टेशन पहुंच कर हमने अपना सामान क्लॉक रूम जमा करवा दिया और एक छोटा सा बैग लेकर मंदिर की तरफ चल दिए । मंदिर रेलवे स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है मुश्किल से 1 किलोमीटर दूर होगा । रेलवे स्टेशन से बाहर निकल कर थोड़ा दायीं तरफ़ चलना है और पहले चौराहे से बायीं तरफ मुड़ कर बिलकुल सीधा जाना है । रेलवे स्टेशन से लेकर मंदिर तक का रास्ता व्यस्त मार्किट से होकर है, इस रास्ते से जाने पर आपको मंदिर का पश्चिमी गोपुरम  दिखाई देता है ।





मंदिर में बैग और कैमरा ले जाना मना है लेकिन आप मोबाइल ले जा सकते हैं । यदि आपके पास जमा करवाने को कुछ नहीं है तो आप पश्चिमी द्वार से भी मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। हमारे पास एक छोटा बैग और कैमरा था जिसे जमा करवाना था तो हमें उतरी द्वार पर भेजा गया । वहाँ सामान रखने के लिए क्लॉक रूम की सुविधा है । अपना सामान यहाँ जमा करवा कर हम लोग मंदिर में प्रवेश कर गए। प्रवेश द्वार के साथ ही पूजा सामग्री और मंदिर से जुड़े साहित्य ,इतिहास की किताबों की कुछ दुकाने भी हैं ।


“बचपन में स्कूल की किताबों में दक्षिण भारत के मशहूर मंदिरों के बारे में काफ़ी पढ़ने को मिला । इनमे मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर ,रामेश्वरम और चिदंबरम मंदिर आदि मुख्य थे । इनमे भी मीनाक्षी मंदिर की सुन्दरता के किस्से बहुत थे । बचपन में कभी सोचा नहीं था कि एक दिन इन्हें सच में देखने का मौका मिलेगा । दक्षिण भारत यात्रा का प्रोग्राम बनाते हुए ये ध्यान रखा कि बिना कोई और दिन शामिल किये मदुरै का भी फाइनल हो जाये । इसीलिए मैंने रामेश्वरम शहर के लोकल जगहों और छोटे मंदिरों को देखने से ज्यादा तरजीह मीनाक्षी मंदिर देखने को दी । यहाँ आकर निराश भी नहीं हुआ । यह भारत के सबसे सुन्दर और विशाल मंदिरों में से एक है। यही आप दक्षिण भारत में यात्रा कर चुके हैं और आपने यह मंदिर नहीं देखा तो समझो आपकी यात्रा पूर्ण नहीं है । मीनाक्षी देवी का यह मंदिर दुनिया के 30 अजूबों में भी शुमार है। तमिलनाडु के मदुरै शहर में स्थिति मीनाक्षी मंदिर को दक्षिण भारत में विजयनगर की मंदिर स्थापत्य कला का सर्वोत्कृष्ट नमूना माना गया है। इस मंदिर के बारे में ऐसी जानकारी है कि जब दुनिया सात अजूबों के चयन के लिए 30 ऐतिहासिक स्थानों को चुना गया तो उसमें से एक मीनाक्षी मंदिर भी था। इसलिए इसे दुनिया के 30 अजूबों में से एक माना जाता है।”

मीनाक्षी मंदिर ,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai



हम उत्तरी द्वार ( 160 फीट ) से मंदिर में प्रवेश हुए । उत्तरी द्वार भी पश्चिमी द्वार (163 फीट ) की तरफ बहुत ऊँचा था। इन ऊँचे द्वारों को गोपुरम बोलते हैं । सबसे ऊँचा गोपुरम(170 फीट) दक्षिण दिशा  में है । मंदिर में कुल 14 गोपुरम हैं। मंदिर के चारों दिशाओं में चार मुख्य गोपुरम हैं बाकि दस  गोपुरम मंदिर के अन्दर हैं और  सभी गोपुरम के ऊपर अलग- अलग मूर्तियाँ बनी हुई हैं और उन्हें विभिन्न रंगों से सजाया हुआ हैं । उत्तरी गोपुरम के सामने एक छोटा सा गलियारा है; जब हम वहाँ पहुँचे तो उसके पास एक स्थानीय संत लोकल भाषा में कुछ प्रवचन कर रहे थे । कुछ लोग उनके सामने बैठे उन्हें ध्यान से सुन भी रहे थे । यहाँ से हम पूर्वी गोपुरम की तरफ़ चल दिए । यहाँ भी मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व की और ही है । पूर्वी गोपुरम की तरफ मंदिर के गलियारे में ही एक बड़ी सी मार्किट है जहाँ पूजा सामग्री, मीनाक्षी देवी की मूर्तियों , माता के वस्त्र ,श्रृंगार के सामान  और मंदिर की जानकारी देने वाली किताबों की कई दुकाने हैं । हमारे यहाँ उत्तर भारत में जिस तरह बहुत से लोग घर में भगवान किशन जी के बाल रूप यानि ठाकुर जी की मूर्ति रखते हैं और उन्हें रोज श्रृंगार से सजाते हैं वैसे ही दक्षिण भारत में लोग घर पर मीनाक्षी देवी की प्रतिमा को रखते हैं और उनका प्रतिदिन श्रृंगार कर उनकी पूजा करते हैं ।


मंदिर में दो गर्भ गृह हैं । पूर्वी गोपुरम के सामने भगवान भोले नाथ का मंदिर है और दक्षिण की तरफ माँ मीनाक्षी देवी का । हमें यह बात पहले मालूम नहीं थी कि यहाँ दो मंदिर हैं  । जब हम पूर्वी द्वार के सामने पहुँचे तो सभी लोग सामने की तरफ़ मंदिर में दर्शन के लिए जा रहे थे ,हम भी उनके साथ हो लिए । दर्शन के लिए लम्बी लाइन लगी थी । लाइन में लगे- लगे आसपास बनी मूर्तियों की मोबाइल से तस्वीरें लेता रहा लेकिन रौशनी कम होने और मोबाइल की फ़्लैश की सिमित रेंज होने से तस्वीरें ज्यादा अच्छी नहीं आ पाई । यहाँ की दीवारों पर ,पिलर पर ,हर जगह शानदार मूर्तियाँ बनी हुई हैं । लगभग आधा घंटा लाइन में लगने के बाद हम गर्भ गृह के सामने पहुँच गए । दक्षिण भारत में लगभग सभी मंदिरों में गर्भ गृह के दूर से ही दर्शन करवाए जाते हैं और अधिकतर गर्भ गृह में रौशनी भी नाममात्र ही होती है। जब मैंने दर्शन किये तो मुझे लगा की ये भोले नाथ की मूर्ति है लेकिन मूर्ति काफी दूर थी सोचा शायद देवी की होगी । मन ही मन प्रणाम किया और बाहर आ गये । मेरी पत्नी को शंशय नहीं था वो बोली ये तो भोले नाथ का मंदिर है माता का नहीं ! मैंने कहा तुझे गलती लगी होगी जब मंदिर मीनाक्षी देवी का है तो गर्भ गृह में भी वो ही होंगी । चल छोड़ ,आओ मंदिर का बाकि हिस्सा घूमते हैं । थोड़ा आगे गए तो वहाँ शिव मंदिर का साइन बोर्ड लगा था और तीर का निशान पीछे की तरफ था यानि जिस मंदिर से हम आ रहे हैं वो शिव मंदिर ही था । आगे जाकर मीनाक्षी देवी मंदिर का साइन बोर्ड भी मिल गया और मंदिर में दर्शन के लिये लगी लाइन भी दिख गयी । ये लाइन पहले से भी ज्यादा लम्बी थी । तत्काल दर्शन के लिए 50 रूपये वाले दो टिकेट लिए और लाइन में लग गए । यहाँ भी लगभग आधा घंटे बाद हम मंदिर के गर्भ गृह के सामने पहुँच गए । तभी लाइन रोक दी गयी और सभी को बैठने को कहा गया । सांध्य आरती का समय हो चूका था और तैयारी भी सब हो चुकी थी । हम सब लोग अपनी अपनी जगह पर बैठ गए और आरती की विधियाँ देखने लगे । 15 -20 मिनट बाद आरती सम्पन्न हुई और सभी को माता के दर्शन करवाए गए ।

मीनाक्षी मंदिर ,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai



मीनाक्षी देवी मंदिर में दर्शन के बाद हम लोग सहस्र स्तंभ मण्डप हाल में चले गए और काफी देर वहाँ फोटो खींचने के बाद मंदिर से बाहर आकर क्लॉक रूम से अपना सामान ले रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिए । यहाँ से रात को कन्याकुमारी के लिए ट्रेन में हमारी रिजर्वेशन थी ।


 
    

मीनाक्षी सुन्दरेश्वरर मन्दिर या मीनाक्षी अम्मां मन्दिर या  मीनाक्षी मन्दिर  भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई नगर, में स्थित एक ऐतिहासिक मन्दिर है। यह भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित है। यह मन्दिर तमिल भाषा के गृहस्थान 2500 वर्ष पुराने मदुरई नगर की जीवनरेखा है। वैगई नदी के दक्षिण किनारे पर बने इस मन्दिर को देवी पार्वती के सर्वाधिक पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। अन्य स्थानों में कांचीपुरम का कामाक्षी मन्दिर, तिरुवनैकवल का अकिलन्देश्वरी मन्दिर एवं वाराणसी का विशालाक्षी मन्दिर प्रमुख हैं।


इस इमारत समूह में 14 भव्य गोपुरम हैं, जो अतीव विस्तृत रूप से शिल्पित हैं। इन पर बडी़ महीनता एवं कुशलतापूर्वक रंग एवं चित्रकारी की गई है, जो देखते ही बनती है। यह मन्दिर तमिल लोगों का एक अति महत्वपूर्ण द्योतक है, एवं इसका वर्णन तमिल साहित्य में पुरातन काल से ही होता रहा है। हालांकि वर्तमान निर्माण आरम्भिक सत्रहवीं शताब्दी का बताया जाता है। मीनाक्षी मंदिर की स्थापना की बात करें तो यह सातवीं शताब्दी से 10वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया गया है। यानी यह भारत के सबसे पुराने मंदिरों में एक है। देश - दुनिया से दक्षिण भारत में भ्रमण को आने वाले लोगों में कोई भी मीनाक्षी मंदिर के दर्शन किए बेगैर नहीं लौटता। मंदिर की भव्यता दूर दूर से लोगों को यहां आने के लिए प्रेरित करती है।

मीनाक्षी मंदिर ,मदुरै – Meenakshi Temple ,Madurai



पौराणिक कथा

हिन्दू आलेखों के अनुसार, भगवान शिव पृथ्वी पर सुन्दरेश्वरर रूप में मीनाक्षी से, जो स्वयं देवी पार्वती का अवतार थीं; उनसे विवाह रचाने आये (अवतरित हुए)। देवी पार्वती ने पूर्व में पाँड्य राजा मलयध्वज, मदुरई के राजा की घोर तपस्या के फलस्वरूप उनके घर में एक पुत्री के रूप में अवतार लिया था। वयस्क होने पर उसने नगर का शासन संभाला। तब भगवान आये और उनसे विवाह प्रस्ताव रखा, जो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस विवाह को विश्व की सबसे बडी़ घटना माना गया, जिसमें लगभग पूरी पृथ्वी के लोग मदुरई में एकत्रित हुए थे। भगवान विष्णु स्वयं, अपने निवास बैकुण्ठ से इस विवाह का संचालन करने आये। ईश्वरीय लीला अनुसार इन्द्र के कारण उनको रास्ते में विलम्ब हो गया। इस बीच विवाह कार्य स्थानीय देवता कूडल अझघ्अर द्वारा संचालित किया गया। बाद में क्रोधित भगवान विष्णु आये और उन्होंने मदुरई शहर में कदापि ना आने की प्रतिज्ञा की। और वे नगर की सीम से लगे एक सुन्दर पर्वत अलगार कोइल में बस गये। बाद में उन्हें अन्य देवताओं द्वारा मनाया गया, एवं उन्होंने मीनाक्षी-सुन्दरेश्वरर का पाणिग्रहण कराया।


यह विवाह एवं भगवान विष्णु को शांत कर मनाना, दोनों को ही मदुरई के सबसे बडे़ त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जिसे चितिरई तिरुविझा या अझकर तिरुविझा, यानि सुन्दर ईश्वर का त्यौहार कहा जाता है। इस दिव्य युगल द्वारा नगर पर बहुत समय तक शासन किया गया। यह वर्णित नहीं है, कि उस स्थान का उनके जाने के बाद्, क्या हुआ? यह भी मना जाता है, कि इन्द्र को भगवान शिव की मूर्ति शिवलिंग रूप में मिली और उन्होंने मूल मन्दिर बनवाया। इस प्रथा को आज भी मन्दिर में पालन किया जाता है ― त्यौहार की शोभायात्रा में इन्द्र के वाहन को भी स्थान मिलता है।


मन्दिर : मंदिर परिसर में मुख्यता दो मंदिर हैं- शिव मन्दिर और मीनाक्षी देवी मंदिर . शिव मन्दिर परिसर के मध्य में स्थित है । इस मन्दिर में शिव की नटराज मुद्रा भी स्थापित है। शिव की यह मुद्रा सामान्यतः नृत्य करते हुए अपना बांया पैर उठाए हुए होती है, परन्तु यहां उनका बांया पैर उठा है। मीनाक्षी देवी का गर्भ गृह शिव के दायीं तरफ स्थित है। इसके साथ ही यहां एक वृहत गणेश मन्दिर भी है, जिसे मुकुरुनय विनायगर् कहते हैं। इस मूर्ति को मन्दिर के सरोवर की खुदाई के समय निकाला गया था। इसके अलावा कई छोटे -2 अन्य मंदिर भी हैं .परिसर में ही एक सरोवर है यह पवित्र सरोवर 165 फ़ीट लम्बा एवं 120 फ़ीट चौड़ा है। इसे स्थानीय भाषा में पोत्रमरै कूलम कहते हैं जिसका शाब्दिक अर्थ है "स्वर्ण कमल वाला सरोवर" और अक्षरशः इसमें होने वाले कमलों का वर्ण भी सुवर्ण ही है।


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सहस्र स्तंभ मण्डप : आयिराम काल मण्डप या सहस्र स्तंभ मण्डप में 985 भव्य तराशे हुए स्तम्भ हैं। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरक्षण में है। ऐसी धारणा है, कि इसका निर्माण आर्य नाथ मुदलियार ने कराया था। मुदलियार की अश्वारोही मूर्ति मण्डप को जाती सीड़ियों के बगल में स्थित है। प्रत्येक स्तंभ पर शिल्पकारी की हुई है, जो द्रविड़ शिल्पकारी का बेहतरीन नमूना है। इस मण्डप में मन्दिर का कला संग्रहालय भी स्थित है। इस मण्डप के बाहर ही पश्चिम की ओर संगीतमय स्तंभ स्थित हैं। इनमें प्रत्येक स्तंभ थाप देने पर भिन्न स्वर निकालता है। स्तंभ मण्डप के दक्षिण में कल्याण मण्डप स्थित है, जहां प्रतिवर्ष मध्य अप्रैल में चैत्र मास में चितिरइ उत्सव मनाया जाता है। इसमें शिव - पार्वती विवाह का आयोजन होता है।


उत्सव एवं त्यौहार : मंदिर से जुड़ा हुआ सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार “मिनाक्षी थिरुकल्याणम (मिनाक्षी का दिव्य विवाह)” है, जिसे स्थानिक लोग हर साल अप्रैल के महीने में मनाते है। दिव्य जोड़ो के इस विवाह प्रथा को अक्सर दक्षिण भारतीय लोग अपनाते है और इस विवाह प्रथा को “मदुराई विवाह” का नाम भी दिया गया है। पुरुष प्रधान विवाह को “चिदंबरम विवाह” कहा जाता है, जो भगवान शिव के चिदंबरम के प्रसिद्ध मंदिर के प्रभुत्व, अनुष्ठान और कल्पित कथा को दर्शाता है। इस विवाह के दौरान ग्रामीण और शहरी, देवता और मनुष्य, शिवास (जो भगवान शिव को पूजते है) और वैष्णव (जो भगवान विष्णु को पूजते है) वे सभी मिनाक्षी उत्सव मनाने के लिये एकसाथ आते है। इस एक महीने की कालावधि में, बहुत सारे पर्व होते है जैसे की “थेर थिरुविजहः” और “ठेप्पा थिरुविजहः” । महत्वपूर्ण हिन्दू त्यौहार जैसे की नवरात्री और शिवरात्रि का आयोजन भी बड़ी धूम-धाम से मंदिर में किया जाता है। तमिलनाडु के बहुत से शक्ति मंदिरों की तरह ही, तमिल आदी (जुलाई-अगस्त) और थाई (जनवरी-फरवरी) महीने के शुक्रवार को यहाँ श्रद्धालुओ की भारी मात्रा में भीड़ उमड़ी होती है।


दर्शन समय : मंदिर में सुबह 5:00  से 12:30 और शाम को 4:00 बजे से रात 9:30 तक दर्शन के लिए खुला रहता होता है।